Mathura Krishna Janmabhoomi-Shahi Idgah Dispute: हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका खारिज की, ‘विवादित ढांचा’ कहने की मांग ठुकराई

Mathura Krishna Janmabhoomi-Shahi Idgah Dispute: मथुरा के बहुचर्चित श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज एक बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने हिंदू पक्ष द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें शाही ईदगाह को आधिकारिक रूप से “विवादित ढांचा” घोषित करने की मांग की गई थी।

🔹 क्या थी याचिका की मांग?

हिंदू पक्ष ने अदालत में यह अपील की थी कि मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को सभी कानूनी दस्तावेजों और सुनवाई में “विवादित ढांचा” कहा जाए। उनका दावा है कि यह मस्जिद भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि पर अवैध रूप से बनाई गई है।

हालांकि, न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र ने इस याचिका को वर्तमान समय में अस्वीकार करते हुए कहा कि ऐसा कोई निर्णायक साक्ष्य पेश नहीं किया गया है जो इस ढांचे को विवादित घोषित करने के लिए पर्याप्त हो।

🏛 18 मुकदमों की एक साथ सुनवाई जारी

इलाहाबाद हाईकोर्ट इस समय श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले से जुड़े 18 मुकदमों की एक साथ सुनवाई कर रही है। ये सभी मुकदमे पहले मथुरा की जिला अदालत में दर्ज थे, जिन्हें मई 2023 में हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया गया था।

📜 पिछले कुछ महत्वपूर्ण फैसले

  • मई 2025: राधारानी को पक्षकार बनाए जाने की याचिका खारिज। कोर्ट ने कहा कि पुराणों के उद्धरण कानूनी पक्ष को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं।
  • अप्रैल 2025: सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष को याचिका में संशोधन की अनुमति दी, जिससे अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) भी केस में पक्षकार बन गया है।
  • 1920: विवादित स्थल को ASI द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था।

🕵️‍♂️ अब आगे क्या?

मामले की अगली सुनवाई जल्द ही होगी, जहां कोर्ट अब कानूनी और ऐतिहासिक तथ्यों पर गौर करेगा। ASI की भूमिका अहम हो सकती है क्योंकि यह संस्था स्थल के पुरातात्विक महत्व की जांच करेगी। साथ ही, यह मामला Places of Worship Act, 1991 के तहत किस प्रकार आता है, इस पर भी बहस होगी।

⚖️ क्या कहता है कानून?

Places of Worship Act, 1991 के अनुसार, 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति को बदला नहीं जा सकता। हालांकि, अयोध्या विवाद को इससे अलग रखा गया था। अब सवाल यह है कि क्या मथुरा केस पर भी कोई अपवाद लागू किया जा सकता है?

📌 निष्कर्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले ने स्पष्ट कर दिया है कि अदालत केवल कानूनी और ठोस साक्ष्य के आधार पर ही निर्णय लेगी, धार्मिक भावनाओं के आधार पर नहीं। इस फैसले से यह संदेश गया है कि अब आगे की कार्यवाही पुरातत्विक, ऐतिहासिक और कानूनी तथ्यों पर आधारित होगी।

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