महाराष्ट्र सरकार ने नागपूर-गोवा शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे के लिए ₹20,787 करोड़ के बजट को मंजूरी दे दी है। हालांकि, कोल्हापुर जिले में इस परियोजना को लेकर तीव्र विरोध सामने आया है, जहां स्थानीय मंत्री और किसान इसका विरोध कर रहे हैं।
✅ क्या है शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे?
शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे एक प्रस्तावित 802 किलोमीटर लंबा, छह लेन वाला नियंत्रित प्रवेश मार्ग है, जो वर्धा के पावनार से शुरू होकर सिंधुदुर्ग (गोवा सीमा) के पत्रदेवी तक जाएगा। यह मार्ग कई शक्तिपीठ मंदिरों और ज्योतिर्लिंगों को जोड़ेगा, जिससे धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और नागपुर से गोवा की यात्रा का समय 18–20 घंटे से घटकर लगभग 7–8 घंटे हो जाएगा।
यह परियोजना महाराष्ट्र राज्य रस्ते विकास महामंडळ (MSRDC) द्वारा संचालित की जा रही है। हाल ही में राज्य कैबिनेट ने ₹12,000 करोड़ भूमि अधिग्रहण के लिए और ₹8,000 करोड़ से अधिक ब्याज हेतु स्वीकृति दी है।
❌ कोल्हापुर में तीव्र विरोध
राज्यव्यापी मंजूरी के बावजूद, कोल्हापुर के मंत्री हसन मुश्रीफ, विधायक राजेंद्र पाटील-यड्रावकर और अशोक माने ने इस मार्ग के कोल्हापुर से गुजरने का विरोध किया है। उनका कहना है कि जिले में पहले से ही पर्याप्त सड़कें हैं और यह नया मार्ग किसानों की उपजाऊ जमीन पर असर डालेगा।
हसन मुश्रीफ ने कहा, “हम विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन किसानों की कीमत पर नहीं। कोल्हापुर को इस महामार्ग की आवश्यकता नहीं है।”
🌾 किसानों का प्रत्यक्ष विरोध
स्थानीय किसानों ने भी परियोजना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। 9 जून को किसानों ने महावितरण कर्मचारियों को सर्वे करने से रोका और भविष्य में भी विरोध जारी रखने की चेतावनी दी। उनका कहना है कि जब तक सरकार कोल्हापुर मार्ग को रद्द करने की आधिकारिक घोषणा नहीं करती, तब तक वे रस्ता रोको और धरने जैसे आंदोलन करते रहेंगे।
किसानों की मुख्य चिंता है – भूमि अधिग्रहण, विस्थापन, और मुआवजे की स्पष्टता न होना।
🔄 सरकार की प्रतिक्रिया और अगला कदम
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने संकेत दिया है कि किसी भी जिले में बिना स्थानीय सहमति के निर्माण नहीं किया जाएगा। कोल्हापुर मार्ग को लेकर विकल्पों पर जल्द ही उच्चस्तरीय बैठक में निर्णय होने की संभावना है।
📌 निष्कर्ष
जहां एक ओर महाराष्ट्र सरकार शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे के माध्यम से राज्य के अधोसंरचना विकास को आगे बढ़ा रही है, वहीं कोल्हापुर की जनता और नेताओं का विरोध यह दर्शाता है कि विकास के साथ स्थानीय हितों का सम्मान भी जरूरी है।