तीन भाषा नीति पर मचा बवाल: गलतफहमियों के कारण हो रहा विरोध, शेलार ने दी सफाई

महाराष्ट्र में तीन भाषा नीति को लेकर राजनीतिक और साहित्यिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है। इस मुद्दे पर उठ रही आपत्तियों और विरोध प्रदर्शनों के बीच भाजपा प्रदेश अध्यक्ष आशीष शेलार ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि सरकार ने किसी भी कक्षा में हिंदी को अनिवार्य नहीं किया है। उन्होंने कहा कि समाज में इस विषय को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर करना जरूरी है, क्योंकि विरोध की जड़ में केवल गलतफहमियां हैं।

हिंदी की अनिवार्यता हटाई गई, विकल्प के रूप में दी गई सुविधा

शेलार ने कहा कि पूर्व में कक्षा 5 से 8 तक हिंदी को अनिवार्य किया गया था, लेकिन वर्तमान सरकार ने इस नियम को समाप्त कर दिया है। अब छात्रों को हिंदी सहित कुल 15 भाषाओं में से किसी एक को वैकल्पिक भाषा के रूप में चुनने की स्वतंत्रता दी गई है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस निर्णय का उद्देश्य छात्रों को लचीला विकल्प देना है, न कि किसी भाषा को थोपना।

राज्य सरकार मराठी और विद्यार्थियों के हित में कटिबद्ध

शेलार ने यह भी स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र सरकार मराठी भाषा और राज्य के छात्रों के हितों के कट्टर समर्थक हैं। उन्होंने राज्य में चल रही चर्चाओं को “अतार्किक, अनुचित और अवास्तविक” बताया। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र में विभिन्न मत और आंदोलन स्वाभाविक हैं, और सरकार उनका सम्मान करती है।

गंभीर अध्ययन और विशेषज्ञों की सिफारिश के बाद लिया गया निर्णय

तीन भाषा नीति का बचाव करते हुए शेलार ने बताया कि यह निर्णय जल्दबाजी में नहीं लिया गया है। इसके पीछे एक वर्ष तक चला गहन अध्ययन और विशेषज्ञों की सलाह शामिल है। इस दौरान भाषा और शिक्षा क्षेत्र के करीब 450 विशेषज्ञों ने इस पर काम किया। इसके आधार पर जो मसौदा तैयार हुआ, उसे जनता के सुझाव और आपत्तियों के लिए जारी किया गया था। सरकार को 3800 से अधिक प्रतिक्रियाएं मिलीं, जिनके अध्ययन के बाद सुकणु समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। उसी रिपोर्ट के आधार पर हिंदी को तीसरी भाषा के एक विकल्प के रूप में प्रस्तावित किया गया है, न कि अनिवार्य के रूप में।

साहित्यिक क्षेत्र में असंतोष, हेमंत दिवटे ने लौटाया सम्मान

तीन भाषा नीति को लेकर साहित्यिक जगत से भी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। प्रसिद्ध मराठी कवि और महाराष्ट्र सरकार से पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार हेमंत दिवटे ने इस नीति के विरोध में अपना साहित्यिक सम्मान लौटाने की घोषणा की है। दिवटे ने कहा कि वे कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने के विचार का दृढ़ विरोध करते हैं। उन्हें वर्ष 2021 में उनके कविता संग्रह ‘पॅरानोइया’ के लिए ‘कवी केशवसुत पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।

समाप्ति

तीन भाषा नीति को लेकर उठे विवाद और विरोध की पृष्ठभूमि में सरकार की सफाई और तथ्यों को सामने रखना एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है। हालांकि, इस विषय पर जनता, साहित्यकारों और शिक्षाविदों के बीच संवाद और पारदर्शिता की और अधिक आवश्यकता महसूस की जा रही है, ताकि किसी भी निर्णय को व्यापक जनसहमति के साथ लागू किया जा सके।

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